जब तक अपने धोती में आग नहीं लगती तब तक इंसान रूपी जीव की आत्मा सुप्त रहती है, मूकदर्शक तमाशबीन सी हाँ दूजे की आग हाथ तापने के लिए एकदम उत्तम बोले तो सेहत के लिए मन के लिए स्वास्थ्यवर्धक सी......उदासीन आपाधापी सी जिन्दगी में कुछ तो रंगबाजी चाहिए न ......बोले तो थोडा सा मसाला वर्ना जिन्दगी बेस्वाद सी है साला......तभी तो बलात्कार जैसे घिनौने कृत्य के बाद जागृत हुई चेतना जाने शब्दों से और कितनी बार करती चीरहरण उस मासूम का और उसके जख्मों को नाखूनों से कुरेदती तब तक जब तक उनमे से लहूँ न रिसने लगे........गर ये चेतना घटना के घटित होते समय जागृत हो आक्रोशित हो थोड़ी सी मर्दानगी थोड़ी सी जिन्दादिली थोड़ी सी हिम्मत के साथ तो शायद ऐसी घटनाएं न हो......बाद में पीड़िता को, कानून को, सरकार को, पुलिस को, कटघरे में खड़ा करने से बेहतर है घटनास्थल पर गर आप मौजूद है तो बस एक आवाज़ उठाये, कुछ दुखद घट जाने के बाद मोमबत्ती जलाने से बेहतर है घटना के समय एक अलख जगाये.........क्यूकि वहां मौजूद हर शख्स है जानता जो हो रहा वो गलत है, लेकिन सब पहल होने का इंतज़ार है करते........कि कहीं से कोई माँ का लाल जो वास्तव में मर्द हो आवाज़ उठाये....यक़ीनन जहाँ चंद आवाज़ उठेंगी वहां एक सैलाब उठेगा......कुछ दिनों पहले मेट्रो में यात्रा के दौरान मैं जल्दबाजी में पुरुष डिब्बे में दाखिल हुई, तो वहां पहले से ही यात्रा कर रहे कुछ लड़के माँ बहन की भद्दी गालियों के साथ बात कर रहे थे, मेरे चढ़ते ही एक लड़की जो पहले से बैठी थी मेट्रो में अचानक बोलने लगी कि आप लोग इतनी देर से गालियों के साथ बात कर रहे है, आपको इतना तो भान होना चाहिए की सार्वजनिक स्थल पर जहाँ महिलाए भी है आप अपनी भाषा मर्यादित रखे......तो उनमे से एक लड़का अकडकर बोला तुम्हे क्या दिक्कत है ? हम आपस में कैसे चाहे बात करे, गर इतनी ही दिक्कत है तो मैडम अपनी गाडी से चलना शुरू कर दो और उसके इतना कहते ही आसपास खड़े कई पुरुष ठठाकर हस दिए......मैंने बिना पीछे मुड़े तेज़ आवाज़ में इतना कहा तुम लोगो को शर्म आनी चाहिए एक तो गलत बात कर रहे ऊपर से ढिटाई इतनी की अकड़ रहे हो........वो लड़का हडबडा गया और उसका स्वर बदल गया बोला मैडम वो बातचीत में एक दो बार कुछ शब्द निकल गए होंगे.......तो वह लड़की बोली झूट मत बोलो इतनी देर से लगातार तुम लोग माँ बहन को इज्ज़त बक्श रहे हो......मुझे एक बात समझ नहीं आती जहाँ एक ओर अपनी माँ बहन को जरा कुछ कह देने पर इनकी मर्दानगी जाग उठती है और ये तीर तलवार लेकर खड़े हो जाते शूरवीरों से वहीँ दूसरी ओर बात बात पर माँ बहन की गाली देकर क्या जताना चाहते है? या तो इनकी माँ बहनों के पास वो विशिष्ट अंग होते नहीं जो एक स्त्री को पूर्णता प्रदान करते है या ये जीव कर्ण या पांड्वो की तरह ईश्वर की डायरेक्ट देन..........इसीलिए जिज्ञासावश ये जीव इस तरह से माँ बहनों को इज्ज़त बक्शते.....लेकिन एक बात और अरे बई स्त्रियाँ तो हमेशा से अबला कमजोर रही है तो क्यूँ उनकी शान में कसीदे पढ़ते हो ? थोड़ी इज्ज़त पुरुषों भी बक्श दो दो चार गालियाँ उनकी शान में भी देकर दिखाओ तो जाने कि आपके जिगर, फेफड़ों और गुर्दों में दम है.......लो जी बावरा मन गालियों के संसार में भटक गया खैर आते है मुद्दे पर हम......बस जी उस लड़के की आवाज़ थोडा सा लडखडा गई, और उसके बाद कई शब्द मुखर हो उठे, कुछ युवाओं के खून में उबाल आया तो कुछ बुजुर्गों ने भी उनकी भर्त्सना की, एक आवाज़ जहाँ बुलंद हुई अनेक स्वरों को हौसला मिला और कई स्वर उठे गलत के खिलाफ..........तो साहब बात बस इतनी सी है पुलिस को सरकार को या दरिंदों को कोसने से कुछ नहीं होने जाने वाला.....जरूरत है आज समय पर आवाज़ उठाने वाले शूरवीरों की (इसमें केवल पुरुष ही नहीं महिलायें भी स्वयं को शामिल समझे ).........और हाँ एक नेक सलाह..........कागजी शेर जो संवादों से ही कर्तव्य निर्वाह कर लेते वो कुछ गालियाँ भाइयों पिताओं की शान में गढ़ इतिहास रचे........दिल्ली के सर्द माहौल से सर्द होते लोगो के जज्बों को चिंगारी दिखाती खरी खरी के साथ खुराफ़ाती किरण आर्य अपने तीखे से कलेवर में