Friday, September 4, 2015

मन भ्रम

नमस्कार मित्रो आज दिमागी कीड़े कुछ दार्शनिक मूड में.........कहने को आतुर अपनी बात.........समझिएगा और पहुचे वहां जहाँ है राह तो अवगत जरुर करियेगा........

मन का भ्रम
इच्छाओं की
अदृश्य डोरी पकडे
गलतफहमियों के
सघन गलियारे में
निरंतर है दौड़ता
राह
अबूझ पहेली सी
अन्धकार घोर अन्धकार
संकरी सी एक गली
जो मुहाने पर आ
हो जाती बंद
उस पल मन का हाहाकार
हो प्रबल है चीत्कारता
लेकिन गूँज उसकी
प्रतिध्वनित हो लौट आती
टकराती है उसके अंतस से
बेचैनी दौडती
लहू की जगह नसों में उसकी
और फिर दौड़ जाता वो
नई तलाश से बंधा
तलाश नए भ्रम की
जो उसके चिर भ्रम को
तृप्ति दे
गतिहीन सा मन
एक तीखी सी बू
नथुनों से टकराती
सीली सी चाहतों की
साँसे बोझिल सी
पैर लहुलुहान थकान से चूर
फिर भी दौड़ता जाता
सांस की अंतिम छोर की तलाश में
बावरा सा मन.......और हाथ आती सिर्फ भटकन और अतृप्त सी प्यास......नयनों में नीर भरे.................है न

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शुक्रिया