Monday, December 22, 2014

कल और आज

अम्मा ने बड़की के मूह पर कस दी थी अपनी हथेली 
और रुदन बड़की का घुट कर रह गया था गले में ही 
आँखों से बह रहा था उसके सैलाब और टाँगे भिची थी 
बंधी थी हिचकियाँ उसकी और अम्मा की हथेली कसी थी 

अम्मा फुसफुसाकर बोली थी चुप कर करमजली 
जो हुआ उसे भूल जा, धो डाल आत्मा पर लगे दाग 
वो बड़े लोग है, मूह खोला तो तबाह हो जाएगा सब 
वो रुंधे गले से दिखाती रही अपने बदन की खरोंचे 
अम्मा कपकपाते हाथों से सहलाती बुदबुदाती रही 

अपनी लाडो को छाती में भीचकर 
कोसती रही गरियाती रही उन दरिंदों को 
और अपने ईश्वर को सुनाती रही खरी खोटी 
इस बात से अनजान, भगवान् पत्थर हो गया अब 

बस जानती थी वो इतना भर ही 
उसकी लाडो की चीख निकली लांघ दालान  
तो पूरा समाज थूकने को हो जाएगा तत्पर 
और वो दरिन्दे नोच लेंगे, वो भी जो रह गया शेष 

अम्मा की हथेली का कसाव बढता गया 
बडकी अम्मा का पल्लू थामे छटपटाहटी रही 
और देखते ही देखते बड़की की सांस गई थम 
अम्मा की हथेली कसी थी कसी रही  

लेकिन पथराई नहीं थी केवल बड़की की आंखें ही 
उस दिन पथरा गया था अम्मा का मन भी
और अम्मा कान में बड़की के अभी भी फुसफुसा रही थी 
चुप रहना मेरी लाडो क्यूकि, चुप रहना ही है नियति हमारी 

अम्मा के चेहरे पर था सुकून बिखरा हुआ 
बडकी को अनंत पीडाओं से मुक्ति जो मिली थी 
फिर कुछ दिन तक अम्मा रही अनमनी कहीं खोई सी 
और फिर एक सुबह अम्मा पकड़ छाती को अपनी 
मार चीत्कारें खून के आसूं रोई थी ............


आज जब छुटकी खड़ी उसी मोड़ पर 
अम्मा की हथेली नहीं कसी उसके मुहं पर 
अम्मा की बुझी हुई आँखों में चमक रही थी चिंगारी 
अम्मा के मन का लावा लगा था दहकने आज 

इस बार छुटकी को सीने में भीच नहीं कहा 
अम्मा ने, चुप कर करमजली 
जो हुआ है उसे भूल जा, धो डाल आत्मा पर लगे दाग 

अपनी छाती में छिपा छुटकी को अम्मा रही थी बडबडा 
मेरी लाडो ये तेरी शर्म नहीं है 
ये शर्म है उन दरिंदो की इस नपुंसक समाज की 
जहाँ हो रही एक बेटी की इज्ज़त नीलाम सरेआम 
और सब तमाशबीन बन है खड़े नज़रे झुकाए 

मत रो मेरी लाडो कर मुखर तू स्वर अपना 
सहना और चुप रहना नहीं है नियति हमारी 
अपनी नियति करेंगे हम स्वयं तय 
नहीं बनने देंगे उन्हें अपना भाग्यविधाता 
जो कहते हमें मुहं मत खोलो रहो चुप 
क्यूकि सहने की प्रथा आई तुम्हारे हिस्से ही 

अपने अस्तित्व को मिटा नहीं ढूंढेगे हम मुक्ति राह 
दिखा देंगे जब दबी चिंगारी मुखरित हो है दहकती 
तो भस्म कर सकती पूरी सृष्टि को वो 
उठ, हो खड़ी मेरी लाडो बन अब, स्वयंसिद्धा तू

छुटकी भय-विफरित आँखों से देख रही थी एकटक 
अम्मा के मुख पर छाई लालिमा और दृढ़ता को
कल की अम्मा का भय आज उसकी ताक़त बन गया 
अब अम्मा ने ठान लिया 
ना सिसक सिसक दम तोड़ेगी लाडो उसकी 
अब एक बार और नहीं अम्मा खून के आंसू रोएगी
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1 comment:

शुक्रिया