तुमने कहा प्यार मुझे तुमसे
मैं भीग उठी मीठे अहसासों में
सपने रुपहले लगी बुनने
कदम आसमां लगे छूने
नयनों में लहराने लगे
लाल रक्तिम डोरे
मैं भीग उठी मीठे अहसासों में
सपने रुपहले लगी बुनने
कदम आसमां लगे छूने
नयनों में लहराने लगे
लाल रक्तिम डोरे
प्रेम की पीग बढ़ाती मैं
विचरने लगी चांदनी से
नहाई रातों में
भोर की पहली किरण सी
चमकने लगी देह
प्रेम तुम्हारा
ओढ़ने बिछाने लगी मैं
जीवन हो गया सुवासित
होने लगा उससे प्यार
फिर यथार्थ का कठोर धरातल
कैक्टस सी जमीं
लहुलुहान होते सपने बिखरी सी मैं
पर सुकूं तू हाथ थामे था खडा
वक़्त के निर्मम थपेड़े
उनकी मार देह और आत्मा पर
निशां छोडती अमिट से
मरहम सा सपर्श तेरा
रूह को देता था क़रार
फिर एक दिन तुमने कहा
मुक्ति दे दो मुझे
नहीं मिला सकता
कदम से कदम
नहीं बन सकता अब
हमकदम हमसफ़र तेरा
मुश्किल थे वो पल
दुरूह से मेरे लिए
तुम्हारे दूर जाने की सोच ही
दहला देती थी हृदय को
मैंने देखी बेचैनी
तुम्हारी आँखों में
तड़पती मछली सी कसक
और उसी क्षण मुठ्ठी से
फिसलती रेत सा
कर दिया था आज़ाद तुम्हे
तुम दूर होते गए
और फिर हो ओझल
निगाहों से मेरी
आज जब याद करती तुम्हे
एक परछाई सी
नज़र आती है बस
हाँ अहसास जीवंत से है
अब साथी मेरे
जिन्होंने जीना सिखाया मुझे
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