Thursday, September 20, 2012

इज़्ज़त और प्यार


लोग अपने अहम को बना लेते है सम्मान,
कहते है यही है जिंदगी हमारी यही हमारा मान,
क्या बेकसूरो के जीवन से भी महँगा है यह सम्मान?
जिसके लिए लटका दिया जाता है इन्हे सरेआम,
झुटि इज़्ज़त के नाम पर बेकसूरो की जिंदगी दाव पर लगाते है,
बेवजह ही प्यार करने वालो को सूली पर चदाते है,
जब किसी बच्ची की इज़्ज़त होती है नीलाम सरेआम,
कुछ लोग करते है ऐसे क्रत्य और इंसानियत को बदनाम,
तब कहाँ जाते है, यह तथाकथित इज़्ज़त के ठेकेदार,
जब हर तरफ गूँजती है उस बदनसीब की कारून चीत्कार,
हर रोज़ कही ना कही है दिखता है यह मंज़र,
जब इज़्ज़त के नाम पर सीने मे सरेआम लगता है कोई खंज़र,
तब क्यू खड़े होते है यह बने तमाशबीन मूक दर्शक?
तब क्यू नही आगे आते यह, और बनते किसी मासूम के रक्षक?
कहते है प्यार जीवन है, प्यार ही जीवन की गति है,
फिर क्यू इज़्ज़त के नाम पर प्यार करने वालो की दी जाती बलि है?
कहते है प्यार धरम, जाति और मान से बड़ा होता है,
फिर क्यू धर्म जाति के नाम पर प्यार जार जार रोता है?
चोराहे पर खड़ा हर पल अपना वजूद खोता है,
झुटि इज़्ज़त और सम्मान के नाम पर प्यारी की दुर्गति है,
झुटि इज़्ज़त को मान सम्मान बनाना क्या सम्मति है?
क्या सच मे है यह किसी को सज़ा देने के हक़दार?
यह समाज मे इज़्ज़त के ठेकेदार, इज़्ज़त के ठेकेदार.............    

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