Tuesday, September 4, 2012

प्रेम डगर

प्रेम डगर कांटो से भरी हाँ संकरी बड़ी
हर कदम संभलना और चलना
हाँ जो जान गया इसकी रीत
वो आंखें बंद कर भी चलता गया
बिना गिरे डगमगाए
इसमें बस समाये एक ही भाव
समर्पण संग विश्वास
प्रेम डगर कांटो से भरी हाँ संकरी बड़ी
हाँ है एकतरफा भी
चल पड़ा जो इसपर
उसको निकलने की राह नहीं
या तो राही हो गया
या फिर मृगतृष्णा सी भटकन
उसकी झोली में आ गिरी
प्रेम डगर कांटो से भरी हाँ संकरी बड़ी
है जीवन निहित इसमें
तो समाई काँटों की चुभन भी
खुशियों की राहगुजर सी
तो आसुओं का सबब कभी
लेकिन जिसने पा लिया मीरा सा भाव
उसको ही है मंजिल मिली
प्रेम डगर कांटो से भरी हाँ संकरी बड़ी..........किरण आर्य
माया मृग जी की पंक्तियों से प्रेरित.........(प्रेम गली सिर्फ संकरी नहीं, इकतरफा भी है.)

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