Thursday, August 30, 2012

ख्वाब

वो ख्वाब जो मोती सा आ गिरा दामन में
हम उठा उसे सहेजा और दिल लगा बैठे
और मान हकीकत आईने सी उसको
हम दरीचे में दिल के सजा बैठे.....
जीने लगे हर अहसास को साथ उसके
बन गया वो ज़िन्दगी के आईना सा,
वक़्त की आँधियों से गुजरा जब वो
तो पाया उसे अक्सर एक मृगतृष्णा सा....
हाथ से रेत सा फिसल जाने का डर
उसके हुआ कुछ और गहरा
जब भीचा उसे मुठ्ठी तले
पानी की बूंदों सा फिसला हथेली से
और खाली रह गए हाथ मेरे....
किसे ठहराए गुनहगार हम
जब गलती खुद हमने की,
ख्वाब को हकीकत समझने की
खैर अब बारी है सजा भुगतने की..........किरण आर्य

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