हम-तुम
हम और
तुम
जब
मिले, तो वो
बने
हम
तुम,
ना हम
रहे
न हम
और
ना
तुम
रहे
न तुम !
हम है सागर
अथाह
तो
उसका किनारा हो
तुम,
उसकी सतह
एक
सद विचार हैं
हम, तो उसकी
अभिव्यक्ति
हो
तुम,
हम शरीर
है
तो
उसकी
आत्मा
हो
तुम,
हम दिल
है
तो
उसकी
धड़कन
हो
तुम,
हम आस्मा
मे
उड़ती
पतंग
है
तो
उसको
सहारा
देती
डोर
हो
तुम,
हम आस्मा
मे
उड़ता पंछी हैं
उन्मुक्त, तो उस
पंछी
की
मंज़िल
हो
तुम,
हम जीवन
की
गति
है
तो
ठहराव
हो
तुम,
हम है
पूरक
जीवन
का, तो जीवन
का
संपूरक
हो
तुम,
हम दृष्टि
है
अहसासो
की
तो
उनको
देखने
का
अहसास
हो
तुम,
तुम बिन
अधूरा
है
जीवन
मेरा और
जीवन
की
सार्थकता
हो
तुम,
मैं और
तुम
दिखते
है दो
लेकिन, तुम ही
मैं हूँ
और “हम” मे
निहित
है हम तुम,
सब को
प्रेम
का
संदेश
है
पढाते
हम-तुम, दिलो
मे
प्रेम
की
ज्योत
है
जलाते
हम-तुम....!
- किरण आर्या
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शुक्रिया