Sunday, September 25, 2011

दिल बनाम आलू


प्रति जी से सुनी जब यह बात, दिल जिसे समझे थे,
हम कभी पागल, दीवाना, बच्चा और अनजाना,
वो तो आलू है जी हा दिल तो आलू है !

सुनकर उनकी यह अनोखी बात,
हंसी की लहर ने शोभित किया मुखमंडल,
और मन में लहराए जज़्बात वाह जनाब !!

यह दिल तो बड़ा चालू निकला, समझे थे क्या इसे,
यह तो आलू निकला हाजी हा आलू निकला !!

सब्जिओ के बढते देख भाव,
दिल ने भी नेताओ जैसे बदले पैतरे है,
इस दिल के भी देखो अजब नखरे है !!

सोचा दिल ने आलू की बदती लोकप्रियता को,
क्यों भुनाया जाए,
अब अपने आपको आलू ही कहलाया जाए !!

सब्जिओ में आलू है सदाबहार,
तो आज इसे ही पहनते है विजय हार,
तो इस तरह जनाब आज दिल यह अब आलू है,
देखा आपने भी, यह कितना चालू है............... किरण आर्य

2 comments:

  1. आलू की दिलचस्प कहानी.... दिल तो आलू है .... बहुत खूब किरन जी

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    1. प्रति जी आपसे ही जाना दिल जिसे समझे थे हम पगला और दीवाना वो आलू है........तो बस ये रचना का जन्म हुआ..........:))

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शुक्रिया